1.#Friday 23, May 2025, 09:00. 3944/ 2. ##Vice President's Secretariat: Text of the Vice-President’s interaction with the Scientific and Farming Communities at ICAR-CCARI, Goa (Excerpts): Posted On: 22 MAY 2025 3:33PM by PIB Delhi. //

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1.#Friday 23, May 2025, 09:00. 3944/ 

2. ##Vice President's Secretariat: Text of the Vice-President’s interaction with the Scientific and Farming Communities at ICAR-CCARI, Goa (Excerpts): Posted On: 22 MAY 2025 3:33PM by PIB Delhi. //

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VIDEO: Vice-President Jagdeep Dhankhar Engages with Scientists and Farmers at ICAR-CCARI in Goa

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Text of the Vice-President’s interaction with the Scientific and Farming Communities at ICAR-CCARI, Goa. (Excerpts):

Posted On: 22 MAY 2025 3:33PM by PIB Delhi

https://www.instagram.com/reel/DI-hZnIIfh6/?utm_source=ig_web_copy_link

vicepresidentofindia

3 w

"We must move from food security to farmer prosperity. Farmer has to be prosperous, and this script has to evolve from institutions like yours and therefore, I appeal to you and also compliment simultaneously for doing much in this direction.

The gap between lab and land must not get bridged, it must be seamless connect.

Lab and land must be together and for this over 730 Krishi Vigyan Kendras must be vibrant centres of interaction with farmers;[ to educate the farmers but you have to be pipeline, you have to be supportive to those Krishi Vigyan Kendras.

You must connect with Karshi Vigyan Kendras around and also Indian Council of Agriculture itself has over 150 institutions focussing on every aspect of Agronomy."

-Hon'ble Vice-President, Shri Jagdeep Dhankhar

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सबको नमस्कार। 


Dr. Parveen Kumar, Director, हसमुख है, काम में लिप्त है। बहुत खुशी जाहिर कर बता रहे थे कि कितनी प्रगति की है। तब इनका चेहरा देखने लायक था। पर इन्होंने मिर्ची की कई चीज़े बना रखी है, वह तीखी होगी।


Shri Sanjay Anant Patil Ji, ‘Padma Shri’ for natural farming. Natural farming is very different from organic farming. गुजरात के महामहिम राज्यपाल देवव्रत आचार्य जी, उनके दिल में, दिमाग  और आत्मा में नेचुरल फार्मिंग बसी हुई है और उसको बहुत महत्व देते हैं। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि इनको पद्मश्री से अलंकृत किया गया। पर विषय कितना जुड़ा हुआ है  जमीन से ‘Natural Farming’ का।  


मेरे लिए बहुत प्रसन्नता का विषय है कि यह संस्था बहुत सक्रिय है, इसका दायरा भी बहुत लंबा है और धारा भी विशेष है। Indian Council of Agriculture Research (ICAR), Central Coastal Agricultural Research Institute (CCARI) — एक बड़ा संयोग है। इसकी शुरुआत 1989 में हुई और मेरी भी राजनीतिक यात्रा 1989 में हुई। तब मैं लोकसभा का सदस्य बना। उसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च से मेरा नाता बढ़ता ही गया।


किसानों के बहुत बड़े हितैषी और राजनीति के बहुत बड़े धुरंधर और महापुरुष चौधरी देवीलाल उस समय भारत के उप-प्रधानमंत्री थे और कृषि मंत्री थे। तो मैंने बहुत समय इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च को देखा, और कई संस्थानों में गया। फिर राज्यपाल, पश्चिम बंगाल की हैसियत से गया। और अब तो जहाँ भी मौका मिलता है उपराष्ट्रपति की हैसियत से मैं कृषि केन्द्रों में ज़रूर जाता हूँ, कृषि विज्ञान केन्द्रों में जाता हूँ, कृषि संस्थानों में जाता हूँ।


उसका एक कारण है और कारण बड़ा विशेष है। भारत की अर्थव्यवस्था में, भारत की सामाजिक व्यवस्था में, ग्रामीण उत्थान में कृषि का बहुत बड़ा योगदान है। विकसित भारत बनने का रास्ता किसान के खेत से निकलता है, गाँव से निकलता है। और इसीलिए मैं खास आग्रह करूँगा किसान भाइयों  से और बहनों से कि आप उत्पादन तक अपने आप को सीमित मत रखो। किसान का काम उत्पादन तक रह गया है। उसके बाद किसान अपने आप को एक तरीके से अलग कर लेता है, तो वह बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था से अपने आप को जोड़ नहीं पा रहा है। किसान को अपने उत्पाद के क्रय-विक्रय में भी भागीदारी चाहिए। 


The farmer must involve thoroughly with marketing of agriculture produce, value addition of agriculture produced. कितनी फैक्ट्रियां चलती हैं कृषि उत्पाद के आधार पर, किसान तो उनके उत्पाद का सिर्फ एक ग्राहक बन जाता है। बड़ा बदलाव किसान की आय में तब आएगा, जब किसान कृषि का व्यापार भी करेगा। कृषि के अंदर जितने input आते हैं – fertilizer, insecticide, and everything – implements, instruments – उनमें में भी अपनी भागीदारी करेगा। किसान और उसके बच्चे-बच्चियाँ यदि अगर वह सीमित दायरे में रहेंगे, तो भारत की आर्थिक व्यवस्था के उत्थान में जो बहुत बड़ी गति आ सकती है, उसमें कमी रह जाएगी। 


और इसीलिए  I have emphasised three things in particular. One, agro-economy is not confined to agro-production only. In all facets of agro-economy, its production, its marketing, its value addition, the farmer must have a very high share. और आवश्यकता अब क्या है Entrepreneurs from the farming community. मैं उनको कहता हूँ — Agripreneurs. This country must have millions of Agripreneurs.


मैं आपको बताना चाहता हूं, आपकी जिलाधीश महोदया महिला हैं। इनकी नौकरी के सदस्य नौकरी छोड़कर कृषि व्यापार में आ रहे हैं। दूध के व्यवसाय में आ रहे हैं, सब्ज़ी-फल  के व्यवसाय में आ रहे हैं। जिन्होंने IIT, IIM में बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त की, वे आ रहे हैं। आप क्यों नही आवो, आपके बच्चे क्यों नहीं आए!


इन बातों के लिए तो training की आवश्यकता ही नहीं है। जन्म से हमें यह ज्ञान है। और सबसे महत्वपूर्ण कदम क्या है कि सरकारी नीतियां बहुत सकारात्मक हैं। दूरगामी नतीजे हो सकते हैं उनके। भंडारण की व्यवस्था हो, ऋण की व्यवस्था हो, और यदि अगर सहकारिता का उपयोग किया जाए, तो बहुत कुछ हो सकता है।


और आज यह भी ज़रूरी है कि जो किसान का फायदा उठाते हैं, किसान के उत्पादन का फायदा उठाते हैं, जो बड़े उद्योगपति हैं,  आलोचना नहीं कर रहा, सलाह दे रहा हूं — उनको भी किसान की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहयोग देना चाहिए। किसान की सहभागिता स्थापित करनी चाहिए, अनुसंधान करना चाहिए। और उनका जो एक फंड होता है — CSR fund — वह ग्रामीण विकास के महत्वपूर्ण मुद्दों में लगना चाहिए। तभी जाकर बड़ा बदलाव आएगा। 


भारत की आत्मा किसान और गांव में बसती है। सामाजिक स्थायित्व के हम सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं। हमें सोचना पड़ेगा की आज के दिन गांव में सब्जी बाहर से आती है, फल बाहर से आता है। इस व्यवस्था को बदलना होगा। दूसरा — पशुधन। दुनिया के कई देश पशुधन पर आधारित हैं। New Zealand जैसे देश को देखें, जनसंख्या बहुत कम है, पर पशुधन काफ़ी है। हम ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं? नई तकनीकी क्यों नहीं ला रहे हैं? और पशुधन के मामले में भी गांव का व्यक्ति सीमित हो गया है — दूध बेचने के लिए। और इसकी खरीदारी भी कौन करता है? जो आपके दूध की कीमत तय करता है, जो आपके दूध की quality तय करता है। वह यह नहीं देखता कि कितने परिश्रम से, कितने लगाव से, कितने संकल्प और सृजन के साथ आप यह कठिनतम काम करते हैं।


पर जब झांकेंगे, आप ऐसा कर क्यों रहे हैं? आपको किसने रोका है कि दूध की छाछ नहीं बने, दूध की दही नहीं बने, दूध की रसमलाई नहीं बने, दूध की आइसक्रीम नहीं बने? क्यों नहीं एक इलाके के अंदर ऐसी व्यवस्था हो कि जो उत्पाद होता है, उसकी sharing हो। हमारी प्राचीन सभ्यता की ओर देखिए, प्राचीन अर्थव्यवस्था की ओर देखिए, कोई चीज़ शायद बाहर से नहीं आती थी। साबुन नहीं आता था, दंत मंजन नहीं आता था, तेल नहीं आता था, घी नहीं आता था, सब्जियां नहीं आती थी, फल नहीं आते थे सब वहीं होते थे।


अब हम पैकेज आइटम की तरफ चले गए हैं। अरे! पैकेजिंग करने वाला तो बहुत कमाता है, पहले तो पैकेजिंग का कमाता है, फिर खुद कीमत तय करता है। अंदर वही है जो आपके घर होती है। एक छोटा सा उदाहरण दूँगा। 


एक किसी दुकान पर गया और बोला, “मुझे गुड़ दे दो।” और व्यापारी को बेचने की बहुत अच्छी कला है, मैं कायल हूँ उनका। और मैंने बहुत बड़ी सराहना करी है मारवाड़ी समाज की वहाँ बच्चे को जन्म से ही तौर-तरीके सिखा देते हैं कि आप आत्मनिर्भर बनो, आप दुकान पर समय दो, आप समय की पाबंदी में रहो, आप सही तरीके से हिसाब का आकलन करो। मैं कायल हूँ उनका।


तो  उन्होंने कहा, “लो गुड़ शक्कर की जात” क्योकि शक्कर थोड़ी गुड़ से बढ़िया होती है, तो किसान ने सोचा आज तो बच्चों को शक्कर ही खिला दू, थोड़ा और पैसा दे दूंगा। कहा सेठ जी, “शक्कर दिखाओ।” तो सेठ जी ने कहा — “लो शक्कर, खांड की जात।” तो उसने कहा खांड की जात हो गयी तो — “खांड ही दे दे” तो सेठ जी ने कहा, ले खांड, बुरे की जात। तो किसान ने जोर मारा — “की आज कुछ भी हो जाए, आज तो बच्चों को बुरा ही खिलाऊँगा, बुरा दे दे।” अब वह व्यापारी बुरा बेचता है किसान को क्या कह कर—“लो बुरो दूध की जात।” किसान कहा ने कहा — “दूध तो मेरे घर में ही है। जो सबसे सर्वश्रेष्ठ चीज तू बेच रहा है, वह तो मेरे घर में ही है।” 


किसान को आज समझाने की आवश्यकता है, किसान को खुद समझने की आवश्यकता है।

भारत सरकार किसान की बहुत मदद कर रही है। सब्सिडी के रूप में कर रही है। 


प्रधानमंत्री ने शुरुआत की थी किसान सम्मान निधि पर मेरा सभी संस्थाओं से आग्रह रहेगा आकलन करें, कितना अच्छा हो कि किसान को मिलने वाली सुविधा सीधी किसान को मिले, किसी और के माध्यम से न मिले। जैसे फर्टिलाइज़र सब्सिडी है बहुत बड़ी रकम है, 3 लाख करोड़ के आसपास है। आप बैठे हो, आपको शायद महसूस ही नहीं है कि आपको इतनी मदद दी जा रही है। पर यह पैसा, जो हर किसान के पास सीधा भेजा जाए तो साल का 30–35 हज़ार रुपया हर किसान का होगा। तो किसान को सरकारी सहायता देने का माध्यम ठीक नहीं है, सीधा किसान को देना चाहिए।


इसमें संस्थाओं को आकलन करना चाहिए, तकनीकी रूप से देखना चाहिए। इसके दूरगामी नतीजे होंगे। अमेरिका के किसान परिवार की आय वहाँ के सामान्य परिवार की आय से ज़्यादा है। आश्चर्य हुआ ना, कि अमेरिका जो बहुत विकसित राष्ट्र है वहाँ सामान्य परिवार की जो आय है और जो सामान्य किसान परिवार की आय है, किसान परिवार की आय ज्यादा है। क्यों? वहाँ किसान को पूरी सरकारी सहायता, सीधे किसान को मिलती है किसी बिचौलिये के माध्यम से नहीं।


दूसरा — कृषि में तकनीकी तो ठीक है, पर तकनीकी आनी चाहिए। और प्रधानमंत्री जी ने तकनीकी प्रसारण का बहुत ही ज़बरदस्त काम किया है। मैंने यहाँ ड्रोन तक देखा है। पर जो हम केमिकल्स उपयोग करते हैं, फर्टिलाइजर्स उपयोग करते हैं। हम हमारे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जाएंगे, तो इसकी आवश्यकता नहीं है। हमारा पशुधन बढ़ेगा, तो खाद की कमी नहीं रहेगी — ऐसा सोचना चाहिए।


मैं मानकर चलता हूँ, इन बातों पर आप चिंतन करेंगे। एक अच्छी बात और है कि भारत के कृषि मंत्री श्री शिवराज चौहान जी बहुत सक्रिय हैं। उन्होंने किसान के जीवन में बड़े परिवर्तन लाने की मनसा को जाहिर कर दिया है। संकल्पित हो गए हैं। देश में जो 730 से ज़्यादा कृषि विज्ञान केंद्र हैं, उन सब से उन्होंने चर्चा की है, लंबी चर्चा की है। लंबी चर्चा का नतीजा यह हुआ कि सब सक्रिय हो गए। आपकी संस्थाएं भी करीब पौने दो सौ के करीब हैं, बड़ी सक्रिय हो गईं। तो मुझे किसान के लिए बहुत अच्छा संकेत नज़र आ रहा है। पर कहते हैं ना की भगवान भी उनकी मदद करता है जो खुद की मदद करते हैं। तो यहाँ से संकल्पित होकर जाओगे। 

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JAI HIND

JAI BHARATHAM

VANTE MATHARAM

BHARAT MATHA KI JAI.

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