1.#NEWS UPDATES: Friday 16, May 2025, 08:20. 3935 / 2. ##President's Secretariat: PRESIDENT OF INDIA PRESENTS 58TH JNANPITH AWARD: Posted On: 16 MAY 2025 6:30PM by PIB Delhi. //
1.#NEWS UPDATES: Friday 16, May 2025, 08:20. 3935 /
2. ##President's Secretariat: PRESIDENT OF INDIA PRESENTS 58TH JNANPITH AWARD: Posted On: 16 MAY 2025 6:30PM by PIB Delhi. //
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Speaking on the occasion, the President congratulated Jagadguru Rambhadracharya. She also congratulated Gulzar for the Jnanpith Award who could not attend the Award ceremony. She wished that Gulzar Ji soon becomes fully healthy and active and continue to contribute to art, literature, society, and the country.
The President said that literature unites and awakens society. From the social awakening of the 19th century to our freedom struggle in the 20th century, poets and writers have played a great role in connecting people. The song 'Vande Mataram' composed by Bankim Chandra Chattopadhyay has been awakening the children of Mother India for almost 150 years and will always do so. From Valmiki, Vyas, and Kalidas to the works of eternal poets like Rabindranath Tagore, we feel the pulse of a living India. This pulse is the voice of Indianness.
The President praised the Bharatiya Jnanpith Trust for awarding outstanding litterateurs of various Indian languages since 1965. She stated that in the process of awarding outstanding literary figures in Indian languages, the selectors of the Bharatiya Jnanpith Award have selected the best literary figures and have preserved and promoted the dignity of this award.
The President said that Jnanpith Awardee women writers like Ashapurna Devi, Amrita Pritam, Mahadevi Verma, Qurratul-Ain-Haider, Mahasweta Devi, Indira Goswami, Krishna Sobti and Pratibha Ray have observed and experienced Indian tradition and society with special sensitivity and have enriched our literature. She said that our sisters and daughters should actively participate in literary creation and make our social thinking more sensitive by taking inspiration from these great women writers.
Speaking about Shri Rambhadracharya Ji, the President said that he has set an inspiring example of excellence. She praised his multi-faceted contributions and said that despite being physically challenged, he has rendered extraordinary service to literature and society with his divine vision. She stated that Shri Rambhadracharya has contributed extensively in both the fields of literature and social service. She expressed confidence that by taking inspiration from his glorious life, future generations will continue to move ahead on the right path in literary creation, society-building, and nation-building.
See the President's Speech-
भारत की राष्ट्रपतत
श
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रीमती द्रौपदी मुमु ु
का
58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह में सम्बोधन
नई ददल्ली – 16 मई 2025
आज ज्ञानपीठ परस्कार स सम्मातनत हए जगद्गरू रामभद्राचार् जी को म
हाददक बधाई दती ह। इस समारोह म गलजार साहब उपस्स्ित नही हो पाए।
म उनको भी ज्ञानपीठ परस्कार क तलए बधाई दती ह। म उन्ह शभकामनाए
प
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रषित करती ह दक व शीघ्र ही पर्तर्ा स्वस्ि और सदिर् होकर कला,
सादहत्र्, समाज और देश को तनरूंतर र्ोगदान देते रहें।
देषवर्ो और सज् जनो,
‘भारतीर् ज्ञानपीठ’, इन दो शब्दों में भारत-भ तम में षवकतसत ज्ञान तिा सृजन
की परम्पराओूं की म लभ त एकता व्र्क्त होती है। र्ह एकता प रे भारत में
व
्र्ाप्त भावनात्मक, साूंस्कृ ततक और सादहस्त्र्क एकता की अतभव्र्षक्त है। भारत
की सभी भािाओूं के सादहत्र् में भारत की तमट्टी की महक होती है। इस
अस्िल भारतीर् चतना को व्र्क्त करत हए उत्कल-मस्र् पूंदित गोपबूंधु दास
ने तलिा िा:
“तिले जहीूं तहीूं भारत बक्षरे
मस्र्षब मु ूं अति आपर्ा कक्षरे
मो नेत्रे भारत-तशला शालग्राम
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प
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रतत स्िान मोर षप्रर् पुरी-धाम“
अिाुत मैं भारत-माता की गोद म जहा कही भी रह, म मानता ह दक म अपन
ही घर म ह। मरी दृषि म भारत-भ तम का एक-एक पत्िर शातलग्राम की तरह
उपासना र्ोग्र् है। भारत का प्रत्र्ेक स्िान मुझे जगन्नाि पुरी धाम की तरह
षप्रर् है।
देषवर्ो और सज्जनो,
सादहत्र् समाज को जोड़ता भी और जगाता भी है। उन्नीसवीूं सदी के सामास्जक
जागरर् से लेकर बीसवीूं सदी में हमारे स्वाधीनता सूंग्राम से जन-जन को
जोड़ने में कषवर्ों और रचनाकारों ने महानार्कों की भ तमका तनभाई है।
बूंदकमचूंद्र चट्टोपाध्र्ार् द्वारा रतचत ‘वूंदे मातरम’ गीत लगभग िेढ़ सौ विों
से भारत-माता की सूंतानों को जागृत करता रहा है, और सदैव करता रहेगा।
सादहत्र् की इस शषक्त को सम्मान दत हए हमारी प्राचीन परपरा म कषव
अिाुत रचनाकार को सबसे अतधक सम्मान ददर्ा गर्ा है और कहा गर्ा है:
कषवमुनीिी पररभ : स्वर्ूंभ :
अिाुत ‘सृषि के रचतर्ता ब्रह्मा कषव हैं, मनीिी हैं, सवुत्र व्र्ाप्त हैं और स्वर्ूंभ
हैं।’
वाल्मीदक, व्र्ास और कातलदास से लेकर रवीन्द्रनाि ठाकुर जैसे कालजर्ी
महाकषवर्ों की रचनाओूं में हमें जीवूंत भारत का स्पूंदन महस स होता है। र्ह
स
्पूंदन ही भारतीर्ता का स्वर है। हम सबकी भारतीर्ता चेतना के स्तर पर
तो है ही, वह हमारे अवचेतन का भी अूंग है।
मैं स्जस पररवेश में पली-बढ़ी ह उसम सिाली तिा ओदिआ भािाएूं प्रमुि हैं।
आज 140 करोड़ देशवासी मेरा पररवार है। देश की सभी भािाएूं और बोतलर्ाूं
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मेरी अपनी हैं। लेदकन, ओदिआ और सूंिाली भािाओूं के सादहत्र् से मेरा
अतधक सूंपकु रहा है। ओदिआ के आददकषव सारला दास की महाभारत, बलराम
दास की दाूंिी-रामार्र् तिा अतत-बड़ी जगन्नाि दास के भागवत पुरार् का
मुझ पर गहरा प्रभाव रहा है। इसी प्रकार, सूंिाली में रघुनाि मुमु ु जी के ‘षबद
चाूंदान’ तिा ‘िेरवाि बीर’ नामक नाटकों का जनमानस म बहत प्रभाव दिा
जाता है। सादहत्र् हमारी सोच का तनमाुर् करता है।
देषवर्ो और सज्जनो,
विु 1965 से, षवतभन्न भारतीर् भािाओूं के उत्कृि सादहत्र्कारों को पुरस्कृत
करके , ‘भारतीर् ज्ञानपीठ’ ने, सादहत्र्-सेवा के माध्र्म से देश की सेवा की
है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मातनत सादहत्र्कारों की कृ ततर्ों को समग्र रूप से
देिा जाए तो उनमें हमारे देश के सभी कालिूंिों, सभी क्षेत्रों, सामास्जक वगों,
चुनौततर्ों और आकाूंक्षाओूं के गहन शब्द-तचत्र ददिाई देते हैं।
भारतीर् भािाओूं के उत्कृि सादहत्र्कारों को पुरस्कृत करने की प्रदिर्ा में,
भारतीर् ज्ञानपीठ पुरस्कार के चर्नकताुओूं ने श्रेष्ठ सादहत्र्कारों का चर्न
दकर्ा है और इस पुरस्कार की गररमा का सूंरक्षर् और सूंवधुन दकर्ा है। इसके
तलए, मैं वतुमान और अतीत के सभी चर्नकताुओूं, प्रवर पररिद के अध्र्क्षों
तिा भारतीर् ज्ञानपीठ ट्रस्ट क प्रबधन की सराहना करती ह।
वतुमान प्रवर पररिद की अध्र्क्ष श्रीमती प्रततभा रार् जी स्वर्ूं एक महान
सादहत्र्कार हैं। मुझे बतार्ा गर्ा है दक उनके उपन्र्ास र्ाज्ञ-सेनी के अब
तक लगभग 120 सूंस्करर् प्रकातशत हो चुके हैं। उनकी इस पुस्तक की ऐसी
लोकषप्रर्ता, अच्िे सादहत्र् के प्रतत पाठकों में उत्साह को रेिाूंदकत करती है
और सादहत्र् की अस्स्मता के बारे में आश्वस्त करती है। श्रीमती प्रततभा रार्
जी को विु 2011 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मातनत दकर्ा गर्ा िा। उनके
अलावा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मातनत मदहला रचनाकारों में आशाप र्ाु देवी,
अमृता प्रीतम, महादेवी वमाु, कुरुतुल-ऐन-हैदर, महाश्वेता देवी, इूंददरा गोस्वामी
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और कृष्र्ा सोबती जैसी असाधारर् मदहलाएूं शातमल हैं। इन मदहला रचनाकारों
ने भारतीर् परूंपरा और समाज को षवशेि सूंवेदना के साि देिा है, अनुभव
दकर्ा ह तिा हमार सादहत्र् को समद्ध दकर्ा ह। म चाहगी दक इन श्रष्ठ मदहला
रचनाकारों से प्रेरर्ा लेकर हमारी बहनें और बेदटर्ाूं सादहत्र् सृजन में बढ़
चढ़कर भागीदारी करें और हमारी सामास्जक सोच को और अतधक सूंवेदनशील
बनाएूं।
देषवर्ो और सज्जनो,
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री रामभद्राचार्ु जी ने श्रेष्ठता के प्रेरक उदाहरर् प्रस्तुत दकए हैं। आप अनेक
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रततभाओूं स सम्पन्न ह तिा आपक र्ोगदान बहआर्ामी ह। आपने शारीररक
द
ृषि से बातधत होने के बावज द अपनी अूंतदृुषि, बस्ल्क ददव्र्दृषि से
सादहत्र्
और समाज की असाधारर् सेवा की है। आपने पास्र्तन की अिाध्र्ार्ी की
अतत-षवतशि व्र्ाख्र्ा की है। ब्रह्मस त्र, भगवद्गीता और प्रमुि उपतनिदों पर
आपने सार-गतभुत भाष्र् तलिे हैं। रामचररतमानस पर आपकी दटप्पस्र्र्ाूं और
समालोचना तनताूंत मौतलक हैं। आप आशुकषव हैं। आपके द्वारा रतचत सूंस्कृत
सादहत्र् षवपुल भी है और श्रेष्ठ भी। आप देववार्ी सूंस्कृत के षवलक्षर् उपासक
हैं। भारतीर् परम्पराओूं के श्रेष्ठतम व्र्ाख्र्ाताओूं में आपका षवशेि स्िान है।
सादहत्र् से जुड़े इस समारोह में भी मैं श्री रामभद्राचार्ु जी द्वारा ददव्र्ाूंगजन
क कल्र्ार् हत दकए गए अमल्र् र्ोगदान की हृदर् स सराहना करती ह।
तचत्रक ट में आपने ददव्र्ाूंगजन की तशक्षा के तलए षवश्वषवद्यालर् की स्िापना
की और उसे तनरूंतर आगे बढ़ार्ा है। आपने ‘परोपकारार् सताूं षवभ तर्:’ के
आदशु को चररतािु दकर्ा है। आपने सादहत्र्-सेवा और समाज-सेवा, दोनों ही
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षेत्रों में, बड़े पैमाने पर र्ोगदान ददर्ा है।
देषवर्ो और सज्जनो,
म समझती ह दक गलजार साहब क अनक प्रशसक इस सभागार म उपस्स्ित
हैं। गुलजार साहब ने दशकों से सादहत्र्-सृजन के प्रतत अपनी तनष्ठा को जीवूंत
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बनाए रिा है। र्ह कहा जा सकता है दक गुलजार साहब कठोरता के बीच
कोमलता को स्िाषपत करने वाले सादहत्र्कार हैं। उनकी कला और सादहत्र्
की साधना से इन क्षेत्रों में सदिर् लोगों को तशक्षा और प्रेरर्ा लेनी चादहए।
मैं एक बार दिर, श्री रामभद्राचार्ु जी को हाददक बधाई दती ह। म आशा
करती ह दक आप क र्शस्वी जीवन स प्ररर्ा लकर, आन वाली पीदढ़र्ा,
सादहत्र्-सृजन में, समाज-तनमाुर् में और राष्ट्र के तनमाुर् में सही रास्ते पर
आगे बढ़ती रहेंगी।
धन्र्वाद!
जर् दहन्द!
जर् भारत!
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JAI HIND
JAI BHARATHAM
VANTE MATHARAM
BHARAT MATHA KI JAI.
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